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Monday 5 September 2016

बचपन की यादों के झरोकों से


उस समय की भी क्या बात थी,
जब मुश्किलों की  कोई रात थी
हम उछलते थे  कूदते थे
और खुशियों की धुन में हमेशा खो से जाते थे

जब बड़ी बड़ी गलतियां भी
रबर से मिटा दी जाती थी
और टिफ़िन के खाने की महक
मन को भर सा देती थी

वो समय की भी क्या बात थी
जब कोई भी चीज़ में आगे निकलने की होड़  होती थी
हम नाचते थे झूमते थे
और उस हर एक पल को दिल में समेट सा लेते थे
जब चाँद जैसी मंजिल भी करीब लगती थी
और अपने से बड़ो की बातें कुछ  कुछ सिखने की राह दिखाती  थी

समय गुजर सा गया है और जिंदगी समिट सी गई
मैं यादों के झरोकों को जब भी करीब से देखने की कोशिश करता हूं
तो हमेशा तुम्हारी कमी महसूस करता हूं
चाँद को देखता हूं तो वो बीते हुए दिनों को याद करके मुस्कुरा देता हूं
छोटे– छोटे बच्चो को स्कूल जाते देखना हमेशा मेरे बचपन के दिनों को दोबारा जिन्दा सा कर देता

वो भी एक दौर था हमारा
और ये भी एक दौर है
 दोस्त

जिंदगी हो या  हो तुम हमेशा मेरे लिए खास रहोगे मेरे यारा
इस जनम की तरह अगले जनम भी हम वही जिंदगी जिएंगे दोबारा