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Sunday, 20 August 2017

मेरा देश लड़ रहा है, बार-बार गिरकर भी ये संभल रहा है.

मेरा देश लड़ रहा है
बार-बार गिरकर भी ये संभल रहा है

कभी आतंकी हरकतों ने हमे दबाने की कोशिश की
तो कभी अपनों ने ही हमे शर्मसार किया,
फिर भी बहादुर जवानो ने आतंक को मुहतोड़ जवाब दिया
शर्मसार करने वालों को कानून ने चकनाचूर किया

मेरा देश लड़ रहा है
बार-बार गिरकर भी ये संभल रहा है
कभी धर्मो के तकरार ने मानवता को रुलाया
तो कभी नारियों पे होते अत्याचार ने हमारा सिर शर्म से झुकाया,
फिर भी कोई न कोई एकता का सन्देश लेकर हमे इंसानियत का एहसास कराया
तो कभी नारी के हौसलों ने उनकी जीत का पताका फहराया

मेरा देश लड़ रहा है
बार-बार गिरकर भी ये संभल रहा है
क्या हो रहा है ये सब अब तो हमको पडोसी ही आँख दिखा रहा है
देश में रहने वाला ही अब देश के खिलाफ आवाज़ उठा रहा है
फिर भी कोई सामने आ रहा है जो हिम्मत से
भारत की ताक़त का एहसास दुनिया को करा रहा है
देश के खिलाफ आवाज़ उठाने वालों को हम सब को सबक सीखना है

मेरे और तुम्हारे प्रयासों से ही एक बार फिर
भारत को अतुल्य राष्ट्र बनाना है  
भारत का मान बढ़ाना है

-मनीष उपाध्याय

Monday, 5 September 2016

बचपन की यादों के झरोकों से


उस समय की भी क्या बात थी,
जब मुश्किलों की  कोई रात थी
हम उछलते थे  कूदते थे
और खुशियों की धुन में हमेशा खो से जाते थे

जब बड़ी बड़ी गलतियां भी
रबर से मिटा दी जाती थी
और टिफ़िन के खाने की महक
मन को भर सा देती थी

वो समय की भी क्या बात थी
जब कोई भी चीज़ में आगे निकलने की होड़  होती थी
हम नाचते थे झूमते थे
और उस हर एक पल को दिल में समेट सा लेते थे
जब चाँद जैसी मंजिल भी करीब लगती थी
और अपने से बड़ो की बातें कुछ  कुछ सिखने की राह दिखाती  थी

समय गुजर सा गया है और जिंदगी समिट सी गई
मैं यादों के झरोकों को जब भी करीब से देखने की कोशिश करता हूं
तो हमेशा तुम्हारी कमी महसूस करता हूं
चाँद को देखता हूं तो वो बीते हुए दिनों को याद करके मुस्कुरा देता हूं
छोटे– छोटे बच्चो को स्कूल जाते देखना हमेशा मेरे बचपन के दिनों को दोबारा जिन्दा सा कर देता

वो भी एक दौर था हमारा
और ये भी एक दौर है
 दोस्त

जिंदगी हो या  हो तुम हमेशा मेरे लिए खास रहोगे मेरे यारा
इस जनम की तरह अगले जनम भी हम वही जिंदगी जिएंगे दोबारा